Monday, February 3, 2025

144 वर्षों में एक बार प्रयागराज में महामहाकुंभ 2025

  "महामहाकुंभ" या "विशेष महाकुंभ" का आयोजन होता है। यह एक दुर्लभ और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन होता है, जो हर 12 वर्षों में होने वाले नियमित महाकुंभ से भी अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

महामहाकुंभ का महत्व

12 महाकुंभ मेलों (यानी 12×12 = 144 वर्ष) के बाद यह विशेष महाकुंभ आयोजित किया जाता है।

इसे अत्यंत शुभ और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली माना जाता है।




इस अवसर पर संगम में स्नान करने से पिछले कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है, ऐसी मान्यता है।

इसमें संन्यासियों, नागा साधुओं, अखाड़ों और करोड़ों श्रद्धालुओं का अद्वितीय संगम होता है।

प्रमुख धर्मगुरु, महायोगी और उच्च कोटि के संत भी इस महामेला में भाग लेते हैं।

अंतिम महामहाकुंभ कब हुआ था?

पिछला महामहाकुंभ 1889 ईस्वी में प्रयागराज में हुआ था। इस आधार पर अगला महामहाकुंभ 2025 + 144 = 2169 ईस्वी में होगा। यानी, यह एक ऐसा आयोजन है जिसे देखने का सौभाग्य हर पीढ़ी को नहीं मिलता।



महाकुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में एक बार भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों—हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक—में आयोजित होता है। इसमें करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत गंगा, यमुना, गोदावरी, और क्षिप्रा नदियों में स्नान कर आत्मशुद्धि का अनुभव करते हैं।

महाकुंभ का महत्व और आयोजन

महाकुंभ का आयोजन चार स्थानों पर ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है:

1. हरिद्वार – गंगा नदी के तट पर

2. प्रयागराज – गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर

3. उज्जैन – क्षिप्रा नदी के किनारे

4. नासिक – गोदावरी नदी के किनारे

हर 12 साल में महाकुंभ, 6 साल में अर्धकुंभ और हर 144 साल में एक बार महाकुंभ (विशेष कुंभ) प्रयागराज में आयोजित होता है।

1. आध्यात्मिक महत्व

यह एक पवित्र स्नान का अवसर होता है, जिससे पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति मानी जाती है।

भगवान, ऋषि-मुनि और संत-महात्माओं के दर्शन एवं सत्संग का लाभ मिलता है।

2. सांस्कृतिक संगम

भारत की विविधता का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है, जहाँ देशभर से लाखों लोग आते हैं।

लोक संस्कृति, भजन-कीर्तन, योग, कथाएँ और प्रवचन का आनंद मिलता है।

3. धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र

विभिन्न धर्म संप्रदायों के साधु-संत अपने शिविर लगाकर धार्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं।

वेद, उपनिषद, पुराण, और धर्म-शास्त्रों की चर्चा होती है।

4. आध्यात्मिक शक्तियों की उपस्थिति

अखाड़ा संन्यासी और नागा साधु अपनी सिद्धियों और तपस्या का प्रदर्शन करते हैं।

उनकी कठोर तपस्या और जीवनशैली को देखने का अवसर मिलता है।

5. मानवता और सेवा का सजीव उदाहरण

लाखों लोगों के लिए भंडारे और सेवा कार्य किए जाते हैं।

नि:शुल्क चिकित्सा, भोजन और शरण की व्यवस्था होती है।

6. आध्यात्मिक और मानसिक शांति

कुंभ मेले में जाने से मन को शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। 

भीड़ में भी दिव्यता और शांति का अनुभव होता है।

7. योग और ध्यान का विशेष महत्व

योग साधना और ध्यान के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।

यहाँ विशेष योग शिविर और ध्यान केंद्र भी लगाए जाते हैं।

8. प्राकृतिक सौंदर्य और संगम का महत्व

गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान का विशेष महत्व है।

इस अवसर पर प्रकृति और धर्म का अनोखा मेल देखने को मिलता है।

9. विश्वभर से श्रद्धालुओं का आगमन

यह मेला सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

यहाँ आने वाले लोग भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा से जुड़ते हैं।

10. व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा

कुंभ मेले से स्थानीय व्यापारियों और पर्यटन उद्योग को बड़ा लाभ होता है।

हस्तशिल्प, धार्मिक वस्तुएँ, भोजन और स्थानीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार होता है।

महाकुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक एकता का जीवंत प्रमाण है।



कब से शुरू हो रहा है महाकुंभ मेला  (When maha kumbh mela start)

इस बार महाकुंभ मेला प्रयागराज में संगम के तट पर लग रहा है. मेला 13 जनवरी पौष पूर्णिमा से शुरू हो रहा है और 26 फरवरी यानी महाशिवरात्रि तक चलेगा. कहा जा रहा है कि इस बार महाकुंभ मेले में भाग लेने के लिए दस करोड़ से ज्यादा भक्त आने वाले हैं. संगम के तट पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का अदृश्य रूप से संगम होता है और इस संगम में नहाने से पुण्य प्राप्त होता है. प्रयागराज में महाकुंभ मेला लगता है जबकि अर्धकुंभ मेला  हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है. मान्यता है कि महाकुंभ मेले में स्नान से व्यक्ति के सभी सांसारिक पाप और क्लेश कट जाते हैं और व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है. 

शाही स्नान की तिथियां  dates of shahi snan

13 जनवरी 2024- पौष पूर्णिमा
14 जनवरी 2025 - मकर संक्रांति
29 जनवरी 2025 - मौनी अमावस्या
3 फरवरी 2025 - वसंत पंचमी
12 फरवरी - माघ पूर्णिमा
26 फरवरी - महाशिवरात्रि पर्व 

कुंभ मेले में अखाड़ों का महत्व akhada importance in mahakumbh mela

पूर्ण कुंभ हर बार प्रयागराज के तट पर ही आयोजित होता है और ये सनातन धर्म का सबसे बड़ा समागम कहलाता है क्योंकि यहां शाही अखाड़े के साधु स्नान करने आते हैं. शाही अखाड़े घोड़े और हाथियों पर अपने अपने लाव लश्कर के साथ साधुओं को लेकर संगम तट पर स्नान के लिए आते हैं जिसे शाही स्नान कहा जाता है. आपको बता दें कि अखाड़े में नागा साधु भी आते हैं जो मेले का मुख्य केंद्र होते हैं. यूं तो मेले में हर रोज ही लाखों लोग डुबकी लगाते हैं लेकिन अखाड़ों द्वारा निर्धारित शाही स्नान की तिथियों के दौरान स्नान करना बेहद पुण्यकारी माना जाता है.


1 comment:

  1. कुम्भ स्नान केवल एक पाप से मुक्ति ही नहीं अपितु ये संपूर्ण सनातन को एक करने का भी कार्य करता है .🙏🙏🙏एक बेहतरीन लेख आप जैसे और लोगों को डिजिटल प्लेटफार्म पे आके सनातन का प्रचार प्रसार करना चाहिए जय श्री महाकाल

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